कविता संग्रह >> अक्षर अक्षर चूम लिया अक्षर अक्षर चूम लियादेवल आशीष
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‘अक्षर अक्षर चूम लिया’ काव्यसंग्रह में कवि ने गीतों और गजलों को पड़ोसी बना दिया है
काव्यप्रेमी पाठकों की नजरों से ऐसे काव्यसंग्रह कम ही गुजरे होंगे जिनमें दो भिन्न काव्यधाराओं को एक ही धागे में पिरो दिया गया हो। ऐसा आपको देखने को मिलेगा केवल आशीष के काव्य संग्रह ‘अक्षर-अक्षर चूम लिया में’। इस संग्रह में कवि ने गीतों और गजलों को पड़ोसी बना दिया है।
उनकी रचनाओं के कुछ अंश देखिये -
यूँ भरम दिल को दिला कर लौट आए
फूल पत्थर पर चढ़ा कर लौट आए
लोभ मन में लाभ का हर पल प्रबल है
भाल पर लेकिन सजा है लाल टीका
क्या करेंगे आचरण अपना बदल कर
पाप धोने का सरल है जब तरीका
पुण्य भी संग में कमा कर लौट आए
भक्तजन गंगा नहाकर लौट आए
प्रिये, तुम्हारी सुधि को मैने यूँ भी अक्सर चूम लिया
तुम पर गीत लिखा फिर उसका अक्षर अक्षर चूम लिया
सर झुके देखे मगर श्रद्धावनत देखे नहीं
राम तो देखे, कभी हमने भरत देखे नहीं
भूख का अहसास क्या होगा डिनर की मेज पर
भूख क्या होती है, सूखी रोटियों से पूछिये
ये रोज नक़ाबें बदलेंगे, बच्चों की किताबें बदलेंगे
कुछ तंगदिलों की नज़रों में मीरा का मुखालिफ़ मीर है क्यों
हम अंधेरों को दूर करते हैं
अपनी ग़ज़लों से नूर करते हैं।
फूल पत्थर पर चढ़ा कर लौट आए
लोभ मन में लाभ का हर पल प्रबल है
भाल पर लेकिन सजा है लाल टीका
क्या करेंगे आचरण अपना बदल कर
पाप धोने का सरल है जब तरीका
पुण्य भी संग में कमा कर लौट आए
भक्तजन गंगा नहाकर लौट आए
प्रिये, तुम्हारी सुधि को मैने यूँ भी अक्सर चूम लिया
तुम पर गीत लिखा फिर उसका अक्षर अक्षर चूम लिया
सर झुके देखे मगर श्रद्धावनत देखे नहीं
राम तो देखे, कभी हमने भरत देखे नहीं
भूख का अहसास क्या होगा डिनर की मेज पर
भूख क्या होती है, सूखी रोटियों से पूछिये
ये रोज नक़ाबें बदलेंगे, बच्चों की किताबें बदलेंगे
कुछ तंगदिलों की नज़रों में मीरा का मुखालिफ़ मीर है क्यों
हम अंधेरों को दूर करते हैं
अपनी ग़ज़लों से नूर करते हैं।
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